|| ॐ श्री हनुमते नमः ||
यावत् तव कथा लोके
विचरिष्यति पावनी
तावत स्थास्यामि
मेदिन्यां तवाज्ञामनुपालयन
विचरिष्यति पावनी
तावत स्थास्यामि
मेदिन्यां तवाज्ञामनुपालयन
अर्थात "जब तक आपका जीवन चरित संसार के विचार को पवित्र करता रहेगा तब तक मैं स्थिर होकर आपकी आज्ञा पालन करने के लिए धरती पर रहूँगा" | हनुमान जी का राम जी से ये कथन इस कलिकाल में भक्तों और सज्जनों का सर्वथा कल्याण करने वाला है। ये एक सर्वमान्य बात है की श्री हनुमान जी ही इस कलयुग के एकमात्र जाग्रत देवता माने जाते हैं, जिनकी शक्ति, कृपा और महिमा का अनुभव आज भी भक्त संसार में करतें हैं। इसी तथ्य को मूल बना कर दास ने अपनी संकुचित और अज्ञानी बुद्धि से उन्ही सर्व-समर्थ और, अप्रकट में भी प्रकट भगवान श्री हनुमान जी से एक प्रार्थना की रचना की है। इस कविता रूपी प्रार्थना में दास ने हनुमान जी से अपने भक्तों, सज्जनों और सभी जीवों को इस कलिकाल रूपी प्रचंड सूर्य के ताप से शीतलता और अभय देने की प्रार्थना की है।
निश्चय प्रेम प्रतीति ते विनय करे सनमान |
तेहि के कारज सकल शुभ सिद्ध करे हनुमान ||
तेहि के कारज सकल शुभ सिद्ध करे हनुमान ||
अतः मुझे द्रढ विश्वास है की दास की इस प्रार्थना पर संकटमोचन भक्तानुकुल श्री हनुमान जी अवश्य ही हम सब के संकटों को हर लेंगे।
तुम्हरी कृपा ने यह कृति कीन्ही।
सब दुःख मिटे त्रास हर लीन्ही।।
-जय जय श्री पवनपुत्र संकटमोचन हनुमान जी-
-दास-
-प्रार्थना-
अब ऐसी कृपा करो हनुमत।
आसान बने जीवन के पथ॥
हो राम राम मय जीवन अब।
और बह जाए निर्झर सा झर॥
श्री राम नाम जन जन में व्यापक हो, व्यापक हो।
श्री राम नाम जन जन में व्यापक हो, व्यापक हो।
लौटे फिर वो श्री राम राज्य।
हो मर्यादा का साम्राज्य॥
तुम भाव भरो ऐसे महान।
जन फिर से हो सामर्थ्यवान॥
अब मार्ग फिर से दे दो तुम, विभीषण को, विभीषण को।
अब मार्ग फिर से दे दो तुम, विभीषण को, विभीषण को।
कर्तव्यपरायण युवक बने।
आलस क्र्तघ्न ये भाव ढले॥
बल बुद्धि ज्ञान दो पवनतनय।
लंका देहने का आया समय॥
कर्तव्यनिष्ठ तुम जैसे, सब जन हो, सब जन हो।
कर्तव्यनिष्ठ तुम जैसे, सब जन हो, सब जन हो।
कलयुग के प्रहरी राम दूत।
एकादश शंकर रूद्र रूप॥
मुनियों के मुनि।
गुनियों के गुनी॥
अब निज भक्ति की हमको शक्ति दो, शक्ति दो।
अब निज भक्ति की हमको शक्ति दो, शक्ति दो।
करबद्ध प्रार्थना तुमसे है।
ये प्राण मेरे बस तुमसे है॥
बस एक निवेदन दास करें।
हिय में आजीवन आप बसे॥
श्री प्रभु पुनीत चरणों में अर्पण, अर्पण हो।
श्री प्रभु पुनीत चरणों में अर्पण, अर्पण हो।
|| ॐ श्री हनुमते नमः ||
अब ऐसी कृपा करो हनुमत।
आसान बने जीवन के पथ॥
हो राम राम मय जीवन अब।
और बह जाए निर्झर सा झर॥
श्री राम नाम जन जन में व्यापक हो, व्यापक हो।
श्री राम नाम जन जन में व्यापक हो, व्यापक हो।
लौटे फिर वो श्री राम राज्य।
हो मर्यादा का साम्राज्य॥
तुम भाव भरो ऐसे महान।
जन फिर से हो सामर्थ्यवान॥
अब मार्ग फिर से दे दो तुम, विभीषण को, विभीषण को।
अब मार्ग फिर से दे दो तुम, विभीषण को, विभीषण को।
कर्तव्यपरायण युवक बने।
आलस क्र्तघ्न ये भाव ढले॥
बल बुद्धि ज्ञान दो पवनतनय।
लंका देहने का आया समय॥
कर्तव्यनिष्ठ तुम जैसे, सब जन हो, सब जन हो।
कर्तव्यनिष्ठ तुम जैसे, सब जन हो, सब जन हो।
कलयुग के प्रहरी राम दूत।
एकादश शंकर रूद्र रूप॥
मुनियों के मुनि।
गुनियों के गुनी॥
अब निज भक्ति की हमको शक्ति दो, शक्ति दो।
अब निज भक्ति की हमको शक्ति दो, शक्ति दो।
करबद्ध प्रार्थना तुमसे है।
ये प्राण मेरे बस तुमसे है॥
बस एक निवेदन दास करें।
हिय में आजीवन आप बसे॥
श्री प्रभु पुनीत चरणों में अर्पण, अर्पण हो।
श्री प्रभु पुनीत चरणों में अर्पण, अर्पण हो।
|| ॐ श्री हनुमते नमः ||