Tuesday 11 May 2010

प्रार्थना "कलयुग के एकमात्र जाग्रत देवता से"


|| श्री हनुमते नमः ||

यावत् तव कथा लोके
विचरिष्यति पावनी
तावत स्थास्यामि
मेदिन्यां तवाज्ञामनुपालयन

अर्थात "जब तक आपका जीवन चरित संसार के विचार को पवित्र करता रहेगा तब तक मैं स्थिर होकर आपकी आज्ञा पालन करने के लिए धरती पर रहूँगा" | हनुमान जी का राम जी से ये कथन इस कलिकाल में भक्तों और सज्जनों का सर्वथा कल्याण करने वाला है। ये एक सर्वमान्य बात है की श्री हनुमान जी ही इस कलयुग के एकमात्र जाग्रत देवता माने जाते हैं, जिनकी शक्ति, कृपा और महिमा का अनुभव आज भी भक्त संसार में करतें हैं। इसी तथ्य को मूल बना कर दास ने अपनी संकुचित और अज्ञानी बुद्धि से उन्ही सर्व-समर्थ और, अप्रकट में भी प्रकट भगवान श्री हनुमान जी से एक प्रार्थना की रचना की है इस कविता रूपी प्रार्थना में दास ने हनुमान जी से अपने भक्तों, सज्जनों और सभी जीवों को इस कलिकाल रूपी प्रचंड सूर्य के ताप से शीतलता और अभय देने की प्रार्थना की है।

निश्चय प्रेम प्रतीति ते विनय करे सनमान |
तेहि के कारज सकल शुभ सिद्ध करे हनुमान ||

अतः मुझे द्र विश्वास है की दास की इस प्रार्थना पर संकटमोचन भक्तानुकुल श्री हनुमान जी अवश्य ही हम सब के संकटों को हर लेंगे

तुम्हरी
कृपा ने यह कृति कीन्ही
सब दुःख मिटे त्रास हर लीन्ही।।


-जय जय श्री पवनपुत्र संकटमोचन हनुमान जी-
-दास-

-प्रार्थना-

अब ऐसी कृपा करो हनुमत।
आसान बने जीवन के पथ॥

हो राम राम मय जीवन अब।
और बह जाए निर्झर सा झर॥

श्री राम नाम जन जन में व्यापक हो, व्यापक हो।
श्री राम नाम जन जन में व्यापक हो, व्यापक हो।

लौटे फिर वो श्री राम राज्य।
हो मर्यादा का साम्राज्य॥

तुम भाव भरो ऐसे महान।
जन फिर से हो सामर्थ्यवान॥

अब मार्ग फिर से दे दो तुम, विभीषण को, विभीषण को
अब मार्ग फिर से दे दो तुम, विभीषण को, विभीषण को

कर्तव्यपरायण युवक बने।
आलस क्र्तघ्न ये भाव ढले॥

बल बुद्धि ज्ञान दो पवनतनय।
लंका देहने का आया समय॥

कर्तव्यनिष्ठ तुम जैसे, सब जन हो, सब जन हो
कर्तव्यनिष्ठ तुम जैसे, सब जन हो, सब जन हो

कलयुग के प्रहरी राम दूत।
एकादश शंकर रूद्र रूप॥

मुनियों के मुनि।
गुनियों के गुनी॥

अब निज भक्ति की हमको शक्ति दो, शक्ति दो
अब निज भक्ति की हमको शक्ति दो, शक्ति दो

करबद्ध प्रार्थना तुमसे है।
ये प्राण मेरे बस तुमसे है॥

बस एक निवेदन दास करें।
हिय में आजीवन आप बसे॥

श्री प्रभु पुनीत चरणों में अर्पण, अर्पण हो।
श्री प्रभु पुनीत चरणों में अर्पण, अर्पण हो।

|| श्री हनुमते नमः ||

Friday 30 April 2010

श्री राम स्वरुप

जगत प्रिय, राम भक्तों, जय श्री सीताराम। राम स्वरुप तो भारत और पूरे विश्व की एक ऐसी अनमोल धरोहर है, जिसका पूरा मूल्य आंकना और जिसका पूरी तरह वर्णन करना असंभव ही है। गोस्वामी तुलसीदास जी भी अमृत सी वाणी में ये कह गए हैं

"हरी अनंत हरी कथा अनंता |
कहहि सुनहिं बहु बिधि सब संता ||"


परन्तु फिर भी करुनामई श्री रामचन्द्र अपने सेवकों, भक्तों, और दासों पर अनेकानेक तरह से और अनेकों बार कृपा करके अपने अनंत चरित्र की झांकिओं को उनके द्वारा या उनकी रचनाओं के द्वारा जगत में प्रतिबिंबित करते रहते हैं। ऐसी ही एक झांकी मैंने भी अनुभव की और उसे उन्ही कि कृपा से काव्य-बद्ध किया, रामचंद्र जी के अनंतानंत चरित्र को बतलाते हुए मैंने इस कविता में राम जी को मंदिर के विग्रहों और सदियों पुरानी धार्मिक परम्पराओं से कुछ परे बताने का प्रयास किया है। मेरा ध्येय किसी कि भावनाओं को आहत करने का नहीं है, अपितु ये विनम्र सन्देश देने का है कि श्री राम जी की पूजा को, प्रथाओं और बन्धनों से परे जानते हुए मुक्ति और बन्धनों से मुक्त होने का मार्ग जानें।


-जय जय श्री रघुकुलनायक श्री रामचंद्र-
-
जय जय श्री रामभक्त हनुमान-

-दास-


श्री राम स्वरुप

राम राम जय राम राम
राम राम जय राम राम

राम नाम जीवन का सार |
राम राम जय राम राम ||

सिया प्रिय है राम राम |
बजरंग स्वामी राम राम ||

भरताग्रज है राम राम |
दशरथ कौशल्या के बाल ||

रा राम जय राम राम
राम राम जय राम राम

जिनकी कीरति चारो धाम |
जीवन जिनका था निष्काम ||

मर्यादा है राम राम |
पुरुषोत्तम है राम राम ||

प्रत्यन्चा धनु की है राम |
धरा शोक नाशक है राम ||

रा राम जय राम राम
राम राम जय राम राम

समझो इनको ये नहीं, कर्मकाण्ड और अंधविश्वास |
ये तो हैं वो सत्य रूप, करुण भाव और क्षमा स्वरुप ||

राम नहीं बसते हैं मंदिर की सुन्दर मूरत में प्यारे |
राम तो हैं बूढी शबरी के झूठें बेरों को खाने वाले ||

सेवक, प्रजा प्रिय हैं राम राम |
वीर धर्म रक्षक हैं राम ||

रा राम जय राम राम
राम राम जय राम राम

राम नहीं पाओगे माला जप जप कर महलों में तुम |
लेकिन राम स्वयं आवेंगे जो मानव बन जाओगे तुम ||

राम राम वन विचरक |
राम दशानन काल राम ||

राम राम शिव भक्त राम |
सीय पति श्री राम राम ||


रा राम जय राम राम
राम राम जय राम राम

हनुमत स्वामी राम राम |
सत गुण विष्णु अंश राम ||

रा राम जय राम राम
मेरे प्रेरक राम राम

|| सीताराम ||

Monday 26 April 2010

राम नाम महात्मय

प्रिय राम भक्तों, सीताराम। किसी ने ठीक ही कहा है, "राम ते बड़ा राम कर नामा"। अनुभवी इस बात से भली भांति परिचित होंगे कि राम नाम में एक ऐसी अचूक शक्ति है जो इस संसार के क्या, परलोकों के संकट काटने में सक्षम है। तुलसीदास जी मानस में ही जन मानस को सूक्ष्म अपितु सटीक सन्देश दे गए है,

"सकल सुमंगल दायक रघुनायक गुण गान
सादर सुनहिं तें तरही भव सिंधु बिना जल जान।।"

श्री राम से बड़ा कृपालु तो संसार में कोई नही, उन्ही कृपालु की करुना-लीला का पात्र बन मैंने हालही में राम नाम महात्मय को अनुभव किया, गत एक माह की अवधि में मेरे समक्ष कुछ ऐसे अवसर आय जब कि मुझे लगा की मैं उस कठिनाई का समाधान करने में सक्षम हूँ, पर न जाने क्यूँ मैं हार रहा था। पर तब रामबाण के समान रामनाम का स्मरण करते ही मैंने ये अनुभव किया की स्थितियां कुछ परिवर्तित हो रही है, जहा मुझे कुछ उपाय नही सूझ रहा था, वहीं मैं कुशलता दर्शाने लगा, मेरी असमर्थता, समर्थता में बदल गई, और मैं सफल रहा। राम नाम जपते ही मेरे मन में एक विश्वास जाग गया की अब तो कोई परेशानी हो ही नही सकती और सच में परेशानियां रही भी नहीं। एक उदाहरण के तौर पर, आप सभी को एक वास्तविक घटना बताता हूँ, एक माह पहले मेरी भौतिक विज्ञान की प्रयोगात्मक परीक्षा थी, परीक्षा के पहले ही मैंने सभी प्रयोगों की अच्छी कसरत कर ली थी और परीक्षा में भी वही प्रष्न आया जिसकी मुझे दूसरों से अधिक कसरत थी, परन्तु फिर भी परीक्षा कक्ष में मैंने अपना नियंत्रण खो दिया और नतीजन समय बीत रहा था पर मैं कुछ भी नही कर पा रहा था, काफी देर तक असफल प्रयास करने के बाद मैं कुछ देर रुका। सोचा की क्या करू, आँखें बंद करी, गहरी सांस ली और मन में ही राम नाम का जाप किया। आँखें खोली तो लगा की आत्मविश्वास में कुछ वृद्धि हुई है। फिर जब पुन्नः प्रयास किया तो प्रसन्न हो गया। उसके बाद का प्रयोग मैंने सफलता से किया और मुझे उस परीक्षा में अच्छे अंको की आशा भी है। उसके बाद की अधिकतर परीक्षाओं में मैंने अपने प्रष्न पत्र पर || श्री राम || लिखा और मेरी अधिकतर परीक्षाएँ अच्छी हुई। इसी अनुभव को मूल बना कर मैंने प्रभु कृपा से इस कविता की रचना की जिसका शीर्षक "राम नाम" है।

-जय जय सियापति श्री रामचंद्र-
-जय जय श्री राम भक्त श्री हनुमान-

-दास-

राम नाम

उल्टा जप लेओ, सीधा जप लेओ राम नाम फिर भी फल दायक |
उल्टा जपते जपते जिसको डाकू बन गए सब बिधि लायक ||

कोऊ जाने कुल, जाति को जाने, कोऊ जाने कीन्ह जाए |
रामबोला भये तुलसी बाबा सब जग जाने जाए ||

धर्म (भरत) स्वयं जो नाम जपत है, दशरथ जपै जो नाम |
ओ नाम जपत ही सब बन्धुन के बन जाए सब काम ||

दुई वर्णन के राम नाम में दूँडो तो सृष्टि मिलि जाए |
महिमा ऐसी राम नाम कि पाथर में नारी दिखलाए ||

राम नाम तो पवन ऐसा पाथर के बंधन मिट जाए |
राम नाम की शक्ति ऐसी वन अशोक की लाज बचाए ||

राम नाम सुन्दर है ऐसा शंकर भी भव में अकुलाए |
हनुमत जिनके दास परम है नाम वहीं अमृत कहलाए ||

है आधा जो नाम सीय बिन, महिमा उसकी कही न जाए |
दास नवावै सीस चरण में "सीताराम" कहत वो जाए ||

|| सीताराम ||


Sunday 18 April 2010

अहिमर्दन पातालपुरी श्री हनुमान जी महाराज

आप सभी राम भक्तों को दास का सीताराम। हालही में मुझे परम कृपालु श्री हनुमान जी की कृपा से उन्ही का एक विग्रह देखने को मिला, जिसे अद्भुत कहना कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। यह विग्रह "लेटे हुए हनुमान जी" के नाम से विख्यात है। इस विग्रह कि शोभा और सौन्दर्य, वर्णन और शब्धों से परे है, इसमें हनुमान जी महाराज लेटी हुई मुद्रा में हैं और उनके दोनो ओर राम और लक्ष्मण विराजे हैं। लेटे हुए हनुमान जी की कृपा भारत के कई स्थानों पर है, किन्तु लखनऊ में इस विग्रह के मंदिर का पुनरुद्धार और प्रचार थोड़े समय पहले ही हनुमत प्रेरणा से हो पाया है। इस मंदिर के पुनरुद्धार और संरक्षण का समस्त श्रेय श्री सुनील गोम्बर जी, उनके परिवार और जे.बी. चैरीटेबल ट्रस्ट से निरंतर संपर्क रत हनुमत भक्तों को जाता है। यह मंदिर "अहिमर्दन पातालपुरी श्री हनुमान जी महाराज" के नाम से विख्यात है और "अहिमर्दन पातालपुरी हनुमान जी सेवा ट्रस्ट लखनऊ (पंजी.)" के द्वारा संचालित होते हुए लखनऊ में स्थित डालीगंज पक्के पुल से कुछ दूरी पर स्थापित है, और यहाँ प्रत्येक मंगलवार को हनुमान जी महाराज का श्रृंगार उन्ही के किसी भक्त के हातों से कराया जाता है। इस मंगलकारी मंगलमय हनुमान मंदिर के बारे में विस्तार से जानकारी www.patalpurihanumanji.com पर उपलब्ध है। इसे मैं श्री वज्रांग देव हनुमान जी की मुझ दास पर असीम कृपा ही कहूँगा कि मुझे "अहिमर्दन पातालपुरी हनुमान जी मंदिर" में अप्रैल को हुए हनुमान जयंती उत्सव में जाने का निमंत्रण उन्ही के कृपा पात्र श्री सुनील गोम्बर जी से प्राप्त हुआ और मैं उस उनमोल अवसर का लाभ उठा पाया। उस उत्सव के कुछ द्रश्य मैं यहाँ पर उपलब्ध करा रहा हूँ। सभी बक्तों से दास का अनुरोध है की मंदिर जावें और हनुमान जी के दर्शन कर अपने जीवन को धन्य करें।

||मंदिर का मुख्य द्वार ||





















|| मंदिर की सीढियां ||






















|| राम और लखन जी सहित अहिमर्दन पातालपुरी श्री हनुमान जी महाराज ||





















|| श्री सुनील गोम्बर द्वारा भक्तों को प्रसाद वितरण||





















|| भजन संध्या ||





















|| जय जय श्री सीताराम ||
|| जय जय श्री अहिमर्दन पातालपुरी हनुमान जी ||

-दास-

Saturday 27 March 2010

जो चाहो उजियार

प्यारे राम भक्तों, आप सभी को सीताराम | यूँ तो श्री राम सर्व व्यापी हैं, पर स्वयं की ही लीला से, न्हें जन मानस तक पहुचाने वाला पवित्र औरर्वग्राह्य ग्रन्थ तो श्रीरामचरितमानस ही है, जिसके रचैता श्री हनुमा और सीताराम जी के कृपा पात्र श्री तुलसीदास जी हैं | भगवत कृपा और श्री सुनील गोम्बर जी कि सहायता से मुझे राम जी के प्रिय भक्त श्री तुलसीदास जी की जीवनी पर आधारित एक नाटक के मंचन को देखने का अवसर प्राप्त हुआ, जिसका शीर्षक "जो चाहो उजियार" है | नाटक सरल और सुंदर है, और तुलसीदास जी की जीवन गाथा पर प्रकाश डालता है | नाटक के बारे में विस्तृत जानकारी www.jcu.co.in पर उपलब्ध है | सभी राम भक्तों से दास का विनम्र अनुरोध है कि नाटक कि डी.वी.डी क्रय करें और तुलसीदास के जीवन दर्शन कर, राम भजन करें और धन्य होंवे |

|| जय जय श्री सीताराम ||

-दास-

Friday 26 February 2010

एक दिन देखी छवि राम की

मेरे प्यारे राम भक्तों, दास कि इस कविता के पीछे करुणा स्वरूप प्रभू श्री राम की असीम कृपा की एक झलक छुपी हुई है | एक दिन मैं अपने कंप्यूटर पर कुछ काम कर रहा था कि तभी, मेरी नज़र मेरे डेस्कटॉप के वालपेपर पर अटक गयी | उस वालपेपर में राम जी और उनकी सेवा मुद्रा में उपस्थित हनुमान जी की छवि बनी थी | उस छवि में राम जी के अति कोमल स्वरूप और मुख पर अति-सौम्य भावों को देख कर मैं चकित रह गया और मेरे मन में एक विचार आया कि इतने कोमल शरीर वाले, और शांत मुख-मंडल वाले प्रभु श्री राम कैसे, किसी से भी युद्ध कर सकते हैं, और कैसे भयंकर राक्षसों का संघार कर सकते हैं | इसे प्रभु की असीम कृपा का प्रसाद कहते हुए ही मैं गद गद हो सकता हू, की मुझे इस गुप्त ज्ञान का भान हुआ की प्रभु भले ही संसार रूपी भव में मानव रूप लेकर प्रकट होते हैं और भक्तों और सभी जन को आनन्दित करने के लिए लीलाएं करते हैं पर वे फिर भी इस सब से परे रहते हुए निर्विकार और परम-आनंद स्वरूप ही रहते हैं | और इसी भाव को मूल बनाकर मैंने भगवत कृपा से इस कविता की रचना की जिसमे मैंने भगवान राम की विरोधाभासी लीलाओं का वर्णन करने का लघु प्रयास किया है.

|| जय जय श्री राम ||

-दास-


एक दिन देखी छवि राम की


एक दिन देखी छवि राम की |
जानी महिमा रघुपति बाण की ||

देख राम तन हुआ आचरज |
ऐसी माया रचते करुणाकर ||

कोमल तन कोमल मुख मंडल |
कैसे करते युद्ध भयंकर ||

गेरू वस्त्र वनवासी प्रभु के, श्याम शरीर तेज है मुख पे |
क्षत्रिय फिर भी कही ऐसा हुआ होगा युगों युगों मैं ||

नयन कमल से ये सिय वर के |
भिन्न नही है शिव त्रिनेत्र से ||

नही कोई सीमा राम शौर्य की |
एक दिन देखी छवि राम की ||

सौम्य आचरण वाणी मधुकर |
अनुशासित है जीवन नित क्षण ||

धर्म कहे लेकिन जब युद्ध कर |
धर्म परायण है श्री रघुवर ||

कोमल कर हनुमत सिर पर है |
शिव धनु तोड़न वाले प्रभु है ||

मै मूरख हू समझ ना पाया |
जगत तो है बस राम कि माया ||

श्वास मेरी हर राम दान दी |
एक दिन देखी छवि राम की ||

पित्र वचन का मान रख लिया |
आये तो वन स्वर्ग बन गया ||

स्वाद लिया झूठे बेरों का |
अंत किया बहु भट दुष्टों का ||

पाकर जिनका ही बल माया रचती है ब्रह्माण्ड निकाया |
गले लगाकर उन्ही प्रभु ने केवट का भी मान बढ़ाया ||

दश आनन् के संघारक है |
कोमल करुणामयी तारक है ||

राम कृपा से महिमा जानी |
एक दिन देखी छवि राम की ||


|| सीताराम ||