| एक दिन मैं अपने कंप्यूटर पर कुछ काम कर रहा था कि तभी, मेरी नज़र मेरे डेस्कटॉप के वालपेपर पर अटक गयी | उस वालपेपर में राम जी और उनकी सेवा मुद्रा में उपस्थित हनुमान जी की छवि बनी थी | उस छवि में राम जी के अति कोमल स्वरूप और मुख पर अति-सौम्य भावों को देख कर मैं चकित रह गया और मेरे मन में एक विचार आया कि इतने कोमल शरीर वाले, और शांत मुख-मंडल वाले प्रभु श्री राम कैसे, किसी से भी युद्ध कर सकते हैं, और कैसे भयंकर राक्षसों का संघार कर सकते हैं | इसे प्रभु की असीम कृपा का प्रसाद कहते हुए ही मैं गद गद हो सकता हू, की मुझे इस गुप्त ज्ञान का भान हुआ की प्रभु भले ही संसार रूपी भव में मानव रूप लेकर प्रकट होते हैं और भक्तों और सभी जन को आनन्दित करने के लिए लीलाएं करते हैं पर वे फिर भी इस सब से परे रहते हुए निर्विकार और परम-आनंद स्वरूप ही रहते हैं | और इसी भाव को मूल बनाकर मैंने भगवत कृपा से इस कविता की रचना की जिसमे मैंने भगवान राम की विरोधाभासी लीलाओं का वर्णन करने का लघु प्रयास किया है.|| जय जय श्री राम ||
-दास-
एक दिन देखी छवि राम की
एक दिन देखी छवि राम की |
जानी महिमा रघुपति बाण की ||
देख राम तन हुआ आचरज |
ऐसी माया रचते करुणाकर ||
कोमल तन कोमल मुख मंडल |
कैसे करते युद्ध भयंकर ||
गेरू वस्त्र वनवासी प्रभु के, श्याम शरीर तेज है मुख पे |
क्षत्रिय फिर भी कही ऐसा हुआ न होगा युगों युगों मैं ||
नयन कमल से ये सिय वर के |
भिन्न नही है शिव त्रिनेत्र से ||
नही कोई सीमा राम शौर्य की |
एक दिन देखी छवि राम की ||
सौम्य आचरण वाणी मधुकर |
अनुशासित है जीवन नित क्षण ||
धर्म कहे लेकिन जब युद्ध कर |
धर्म परायण है श्री रघुवर ||
कोमल कर हनुमत सिर पर है |
शिव धनु तोड़न वाले प्रभु है ||
मै मूरख हू समझ ना पाया |
जगत तो है बस राम कि माया ||
श्वास मेरी हर राम दान दी |
एक दिन देखी छवि राम की ||
पित्र वचन का मान रख लिया |
आये तो वन स्वर्ग बन गया ||
स्वाद लिया झूठे बेरों का |
अंत किया बहु भट दुष्टों का ||
पाकर जिनका ही बल माया रचती है ब्रह्माण्ड निकाया |
गले लगाकर उन्ही प्रभु ने केवट का भी मान बढ़ाया ||
दश आनन् के संघारक है |
कोमल करुणामयी तारक है ||
राम कृपा से महिमा जानी |
एक दिन देखी छवि राम की ||
|| सीताराम ||
एक दिन देखी छवि राम की |
जानी महिमा रघुपति बाण की ||
देख राम तन हुआ आचरज |
ऐसी माया रचते करुणाकर ||
कोमल तन कोमल मुख मंडल |
कैसे करते युद्ध भयंकर ||
गेरू वस्त्र वनवासी प्रभु के, श्याम शरीर तेज है मुख पे |
क्षत्रिय फिर भी कही ऐसा हुआ न होगा युगों युगों मैं ||
नयन कमल से ये सिय वर के |
भिन्न नही है शिव त्रिनेत्र से ||
नही कोई सीमा राम शौर्य की |
एक दिन देखी छवि राम की ||
सौम्य आचरण वाणी मधुकर |
अनुशासित है जीवन नित क्षण ||
धर्म कहे लेकिन जब युद्ध कर |
धर्म परायण है श्री रघुवर ||
कोमल कर हनुमत सिर पर है |
शिव धनु तोड़न वाले प्रभु है ||
मै मूरख हू समझ ना पाया |
जगत तो है बस राम कि माया ||
श्वास मेरी हर राम दान दी |
एक दिन देखी छवि राम की ||
पित्र वचन का मान रख लिया |
आये तो वन स्वर्ग बन गया ||
स्वाद लिया झूठे बेरों का |
अंत किया बहु भट दुष्टों का ||
पाकर जिनका ही बल माया रचती है ब्रह्माण्ड निकाया |
गले लगाकर उन्ही प्रभु ने केवट का भी मान बढ़ाया ||
दश आनन् के संघारक है |
कोमल करुणामयी तारक है ||
राम कृपा से महिमा जानी |
एक दिन देखी छवि राम की ||
|| सीताराम ||